लंदन में इलाज के दौरान, जब इरफान के सिरहाने के एक तरफ जिंदगी थी और दूसरी तरफ बीमारी का स्याह अंधेरा, तब अपनी आता की रोशनाई से उन्होने यह खत लिखा था। उम्मीद की एक ऑस। एक काव्यमय दर्शन। जब आँख से ही न टपका तो फिर लहू क्या है! यह खत इरफान भाई ने वरिष्ठ फिल्म पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज को लिखा था।